कमलेश्वर अभी ज़िंदा हैं

Popatram: Dayanand Pandey:

हिंदी कहानी को समकालीन दुनिया से जोड़ने वाले कमलेश्वर का इस तरह बिछड़ के जाना बहुत सालता है। उन के निधन के कुछ दिन पहले ही जब उन से फ़ोन पर बात हुई तो वह अपनी कई योजनाओं के बारे में बताते रहे थें लेकिन अब वह सारी योजनाएं धूल धूसरित हो गई हैं लेकिन सच यह है कि कमलेश्वर की देह हम से बिछड़ी है, कमलेश्वर नहीं। कमलेश्वर तो अभी भी जिंदा हैं, आगे भी जिंदा रहेंगे। कमलेश्वर के अखबारी लेखों की किताब का नाम ही है- कमलेश्वर अभी जिंदा हैं। तो सचमुच कमलेश्वर अभी जिंदा हैं।

कमलेश्वर ने न सिर्फ़ कहानी के मोर्चे पर बल्कि वैचारिक स्तर पर भी खास कर धर्मनिरपेक्षता के मामले पर भी काफी काम किया। और मोर्चा लेना तो उन का जैसे शगल ही था। उन की आवाज़ में जो खनक हमेशा समाई रहती थी, उन के लिखने में यह खनक और गमक के साथ उपस्थित होती थी। काली आंधी उपन्यास जब उन्हों ने लिखा था तो काफी बवाल मचा था। बहुतेरे लोगों की राय थी कि यह इंदिरा गांधी पर आधारित उपन्यास है। मुंबई में एक बार डॉ0 सुब्रमण्यम स्वामी ने उन्हें बधाई दी और कहा कि इंदिरा गांधी का अच्छा चित्रण किया है। कमलेश्वर छूटते ही उनसे बोले यह उपन्यास इंदिरा गांधी पर नहीं विजया राजे सिंधिया पर आधारित है। स्वामी उन दिनों जनसंघ में थे। और विजयाराजे सिंधिया भी। स्वामी इस पर भड़क गए और मामला दूर तक गया। बाद में गुलज़ार ने इसी काली आंधी को ले कर आंधी नाम की फ़िल्म बनाई। जिसे इमरजेंसी में संजय गांधी का शिकार होना पड़ा था। कमलेश्श्वर जब सारिका में संपादक थे तब मुझे याद है उन्हों ने आलम शाह खान की एक कहानी ‘किराए की कोख’ छापी थी। जिस में किराए की कोख देने वाली महिला हिंदू थी और जाहिर है कि जयपुर में आलम शाह खान पर और मुंबई में सारिका पर हिंदूवादी शक्तियों ने जैसे आक्रमण ही कर दिया था। कमलेश्वर ने इस का डट कर मुकाबला किया था। बाद के दिनों में तो सारिका में उन का संपदाकीय जो मेरा पन्ना नाम से छपता था, एक तरह से फास्स्टि ताकतों और सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ हथियार से ही कहीं ज़्यादा काम करने लगा था। मुझे याद है कि जनता सरकार के दिनों में मेरा पन्ना में उन्होंने लिखा था, ‘यह देश किसी मोरार जी देसाई, किसी चौधरी चरण सिंह, किसी जगजीवन राम भर का नहीं है।-’

अलग बात है कि सारिका का यह अंक टाइम्स ऑफ इण्डिया के मैनेजमेंट ने छ्प जाने के बावजूद वितरित नहीं होने दिया था और जला दिया था। इसी प्रसंग मे कमलेश्वर को सारिका से विदा भी होना पड़ा था। इतना ही नहीं तब सारिका भी मुंबई से दिल्ली आ गई थी। बाद में कमलेश्वर ने अपने संसाधनों से कथा-यात्रा नाम की एक पत्रिका निकाली। जिस में यह संपादकीय फिर से छापा था। कथा-यात्रा का जो तेवर था, अद्भुत था। लेकिन दो-तीन अंकों के बाद ही इस पत्रिका को भी बंद होना पड़ा। फिर उन्हों ने गंगा निकाली, दैनिक जागरण गए, दैनिक भास्कर गए। इस से पहले करंट में कॉलम लिखा और न्यायपालिका को वेश्या से भी गई गुज़री लिखने के आरोप में कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट भी झेला। लेकिन माफी नहीं मांगी। उन्हें चेतावनी दे कर छोड़ दिया गया। पिछले दिनों अपने उपन्यास अपने-अपने युद्ध को ले कर हुए कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट को ले कर मैं भी काफी परेशान रहा। रविंद्र कालिया ने कमलेश्वर के इस प्रसंग का जिक्र किया और कहा कि मुझे उन से संपर्क करना चाहिए। मैं ने कमलेश्वर को फ़ोन किया और सारा मामला बताया। कमलेश्वर ने मेरी पग-पग मदद की। और मेरा साहस बढ़ाया। कहा कि झुकिएगा नहीं। मैं ने यही किया। तारीख पर तारीख लगती रही। इस की बडी लंबी कहानी है। फिर कभी विस्तार से बताऊंगा। बहरहाल मामले की सुनवाई चीफ़ जस्टिस के यहां होती थी। जब बहुत हो गया और कोई दो साल से अधिक का समय बीत गया तो चीफ़ जस्टिस ने कोर्ट में ही मुझ से कहा कि एक अनकंडीशनल एपालोजी टेंडर कर दीजिए। और बात खत्म कीजिए। मैं ने उन्हें साफ बता दिया कि, ‘इस मसले पर माफ़ी मांगने वाला नहीं हूं।’ तो चीफ़ जस्टिस को यह बहुत नागवार गुज़रा। तमतमा गए और बोले, ‘तो मैं भी आप को सज़ा देने वाला नहीं हूं।’ यह कह कर फ़ाइल उन्हों ने पेशकार के पास फेंक दी। और मेरे लिए एक चेतावनी भरा आदेश लिखवा दिया। लिखवाया कि आगे से कभी मैं इस तरह का लेखन नहीं करूं। और कि अपने-अपने युद्ध का जब नया संस्करण छपे तब इसे संशोधित कर के छापा जाए। चेतावनी भी हालां कि कानूनी दृष्टि से सज़ा ही मानी जाती है। तो भी मैं ने कमलेश्वर जी को फ़ोन कर के यह बात बताई। तो वह छूटते ही हंसने लगे और बोले, ‘यह तो बहुत ही अच्छा आदेश है। आप ऐसा कीजिए कि अगले संसकरण में इस ज्यूडिशियली वाली बात को और कडा कर दीजिए।’ कमलेश्वर से मेरी पहली मुलाकात चिट्ठियों से हुई थी। प्रेमचंद पर एक किताब की तैया्री कर रहा था। उस के लिए मुझे उन से लेख चाहिए था। न सिर्फ़ उन्हों ने लेख भेजा बल्कि किताब की रूपरेखा के बारे में भी चिट्ठियां लिखीं। तब जब कि उन दिनों मैं पढ़ रहा था। बाद में दिल्ली में जब वह दूरदर्शन में अतिरिक्त महानिदेशक थे, तब मैं दिल्ली नौकरी करने पहुंच गया था, उन से रूबरू मुलाकात होने लगी थी। अपना बना लेना तो कोई कमलेश्वर से सीखे। बड़प्पन उन में कूट-कूट कर भरा था। बाद के दिनों में तो वह फिर से मुंबई लौट गए थें और अब फिर दिल्ली आ गए थं। कमलेश्वर का सौभाग्य कहिए या दुर्भाग्य उन्हों ने घनघोर विपन्नता भी देखी और समृद्धि से भरा आकाश भी। उन्हों ने खुद ही कहीं लिखा है कि एक समय बेटी के लिए दूध की व्यवस्था करना भी कठिन हो गया था। और बाद के दिनों में बात-बात पर लोग लाख-दस लाख पेशगी दे जाते थे। मैं समझता हूं कि हिंदी के लेखकों में कमलेश्वर और मनोहर श्याम जैसी संपन्नता विरले ही लेखकों को नसीब हुई होगी। कमलेश्वर ने शक्ति सामंत, देवानंद सरीखे तमाम फ़िल्म निर्देशकों के साथ काम किया। बर्निंग ट्रेन जैसी फ़िल्म लिखीं। कई फ़िल्मों में उन के द्वारा बोली गई कमेंट्री अब यादगार ही है।

कमलेश्वर ने अपने संस्मरणों में कहीं लिखा है कि एक बार एक प्रोड्यूसर एक फ़िल्मी पार्टी में उन्हें मिला और जब उसे बताया गया कि वह कहानीकार हैं तो वह उन के पीछे पड़ गया और कहा कि मेरे लिए कहानी लिखो। कमलेश्वर को उस ने एक महंगे होटल में एक स्वीट बुक करा कर बैठा दिया। और कहा कि यहीं रहो और यहीं लिखो। हफ़्ता भर बीता तो वह आया और पूछा कि कहानी बनी? उन्हों ने कहा नहीं। वह चला गया। हफ़्ते भर बाद फिर आया और पूछा कि कहानी बनी? तो उन्हों ने कहा नहीं। अंततः उस ने पूछा कि कहानी क्या लिखनी है तुम्हें मालूम भी है? कमलेश्वर बोले यही तो तय करना है। प्रोड्यूसर बिदक गया। बोला, ‘फ़िल्म कितने रील की होगी?’ कमलेश्वर बोले, ‘चौदह-पंद्रह रील की।’ उस ने पूछा, गाने कितने होंगे?’ कमलेश्वर बाले, ‘छह-सात गाने तो होंगे ही।’ प्रोड्यूसर बोला, ‘चलो सात रील हो गई। मार-पीट होगी या नहीं? कमलेश्वर बोले, ‘बिलकुल होगी।’ प्रोड्यूसर बोला, ‘चलो दो-तीन रील की मार-पीट हो गई। कुल कितने रील हो गई-दस रील। अब बोलो कास्टिंग होगी कि नहीं?’ कमलेश्वर बोले, ‘होगी ही।’ प्रोड्यूसर बोला, ‘चलो दो रील कास्टिंग की तो बारह रील हो गई। और अब बची कितनी रील? दो रील तो तुम दो रील की कहानी पंद्रह दिन में नहीं लिख पाए? कैसे स्टोरी राइटर हो?’ कमलेश्वर ने फ़िल्मी दुनिया के ऐसे कई अजीबो-गरीब संस्मरण लिखे हैं।

एक जगह उन्हों ने लिखा है कि फ़िल्मी पार्टियों में शराब रोज हो जाती थी और ज़्यादा हो जाती थी। दूसरे रोज आधा दिन सोने में खराब हो जाता था। एक जगह उन्हों ने लिखा हे कि एक पार्टी में शराब उन्हें ज़्यादा हो गई थी फिर भी कोई उन्हें स्कॉच का एक पैग दे गया। कमलेश्वर बड़े असमंज में थे कि क्या करें? तभी देवानंद उन के पास आए और उन्हें चलने के लिए कहने लगे। कमलेश्वर ने कहा कि यह स्कॉच केसे खतम करें? देवानंद ने कहा कि खतम करने की ज़रूरत ही नहीं है, छोड दीजिए। कमलेश्वर ने कहा आखिर स्कॉच है! देवानंद ने उन से कहा कि खराब थोड़े ही होगी, यही कहीं रख दीजिए कोई पी जाएगा। कमलेश्वर ने ऐसा ही किया। और सचमुच उन्हों ने देखा कि कोई आ कर स्कॉच ले कर पी गया। यह और ऐसी तमाम कहानियां कमेश्वर जी के ज़िंदगी के अटूट हिस्से हैं। कमलेश्वर का कांग्रेस से भी अद्भुत जुड़ाव था और खुल्लम-खुल्ला्। बहुत कम लोग जानते हैं कि, ‘न जात पर, न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर’ नारा कमलेश्वर का लिखा हुआ है। आलोचकों की बैसाखी के बिना ही अपनी रचना के दम पर वह पाठकों के एक बड़े वर्ग में हमेशा लोकप्रिय रहे। बावजूद इस के आलोचकों की राजनीति के वह खूब शिकार हुए।

मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेंद्र यादव की तिकड़ी काफी मशहूर रही है। लेकिन जितनी करीबी मोहन राकेश से पाई शायद किसी और से नहीं। हालां कि दुष्यंत कुमार और धर्मवीर भारती भी उन के खास दोस्तों में थे। लेकिन माहेन राकेश से उन की दोस्ती की बात ही कुछ और थी। मोहन राकेश की चौथी पत्नी अनीता राकेश से जब उन का प्रेम प्रसंग चल रहा था और मोहन राकेश अकेले पड़ गए थे तो सारी लड़ाई और सारे विवाद में कमलेश्वर ही उन के साथ थे। अनीता राकेश को मुंबई जाने के लिए दिल्ली एयरपोर्ट तक कमलेश्वर ही ले गए थे। मोहन राकेश के निधन के बाद अनीता राकेश के संस्मरणों को सारिका में कमलेश्वर ने ही छापा। ठीक वैसे ही जैसे दुष्यंत कुमार की गज़लों को भी कहानी की पत्रिका सारिका में छाप कर उन्हें अमर कर दिया। सारिका में दरअसल कमलेश्वर ने हिंदी कहानीकारों की एक नहीं दो-दो पीढ़ियां तैयार कीं। राजा निरबंसिया कहानी से चर्चा का शिखर छूने वाले कमलेश्वर कितने पाकिस्तान उपन्यास के मा्र्फ़त साहित्य के आकाश पर छा गए। कितने पाकिस्तान ने उन को न सिर्फ़ साहित्य अकादमी पुरस्कार दिलवाया बल्कि एक साथ कई रिकार्ड बनाए। हिंदी में छपा वह पहला उपन्यास है जिस के फटाफट बारह संस्करण छप गए। दुनिया की कोई बीस भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ। एशिया महा़द्वीप का जो दर्पण कितने पाकिस्तान प्रस्तुत करता है, वह न सिर्फ अदभुत है बल्कि विरल भी। कमलेश्वर की कई कहानियां, कई किस्से, कई संस्मरण बिलकुल आखों के सामने नाच-नाच जा्ते हैं। वह लोगों से खेलते भी बहुत थे। उन की इस कला का बखान अगर न किया जाए तो उन के बारे में बात शायद अधूरी रहेगी।

किस्से तो कई हैं लेकिन यहां एक ही किस्सा काफी है। इलाहाबाद कॉफी हाउस में उन्हों ने एक बार एक लेखक से कहा कि, ‘भाई बधाई!’ लेखक महोदय बोले, ‘क्या हो गया?’ कमलेश्वर जी ने कहा, ‘अरे आप को पता नहीं कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास में आप की भी चर्चा की है?’ लेखक महोदय बोले, ‘क्या कह रहे हैं?’ कमलेश्वर ने कहा, ‘यकीन न हो तो किताब देख लीजिए।’ लेखक महोदय ने बिना किताब देखे ही यह बात बहुतों को बता दी कि मेरा नाम आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास में लिखा है। लोग जब उन का मजाक उड़ाने लगे तो वह कमलेश्वर की तर्ज पर ही वह बोले, ‘यकीन हो तो किताब देख लीजिए।’ लोग फिर भी उन का मजाक उड़ाने से नहीं रूके। और उन से बोले आप खुद भी तो किताब देख लीजिए। लेखक महोदय ने आचार्य रामचंद्र का हिंदी साहित्य का इतिहास किताब खरीदी और कई बार उलट-पुलट कर पढ़ गए। लेकिन उन्हें अपना नाम नहीं दिखा। वह सीधे कमलेश्वर के पास पहुंचे। और तमतमा कर उन के सामने हिंदी साहित्य का इतिहास किताब रख कर उन से पूछा, ‘कहां है इसमें मेरा नाम? कमलेश्वर मुसकुराए और किताब हाथ में ली, किताब की एक लाइन उन्हें पढ़ाई और कहा कि यह देखिए। और पढ़िए। लेखक महोदय ने फिर पढा और कहा कि कहां मेरा नाम है? कमलेश्वर ने कहा यह ध्यान से देखिए कि जो ‘आदि-आदि लिखा है, वह कौन है? अरे इस आदि-आदि में आप ही तो हैं !’ तो ऐसे चुहुलबाज़ भी थे कमलेश्वर जी।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Donate Now

We, at PopatRam.com, are committed to making the democracy of Bharat that is India, more stronger and powerful, so that Bharat can become Vishwa Guru by 2047. For this, we are committed to spreading the positivity of our values, traditions, and deep-rooted ethos through deep analysis of news and views, news research, and nationalistic editorials. Your help through a little bit of a donation can help us realize our commitment to making our country Bharat a Vishwa Guru. Your donation money will be utilized to resource and publish news/views/articles/editorials without any bias and dependence on advertisements. Regarding the PAN CARD please mail it on poptramofficial@gmail.com

You can help us through a donation of Rs.100/200/500/1000/4999/-
A PAN Card is required if making a donation of more than 4999/-

Note:-Donation will be accepted only by Indian nationals.


This will close in 20 seconds